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45 मिनट में कैसे लुटा 2जी


नई दिल्ली.स्पेक्ट्रम एलॉट करने के लिए सभी कार्रवाई पूरी करने को केवल 45 मिनट दिए गए थे। भास्कर ने दिल्ली में सत्ता के गलियारों को खंगाला। नौकरशाहों और संचार विभाग के अधिकारियों से लेकर टेलीकॉम कंपनियों ने ही बताया कि 45 मिनट में क्या-कुछ, कैसे और क्यों हुआ ? कौन-कौन परदे के पीछे काम कर रहे थे और कौन परदे के आगे?

स्पेक्ट्रम एलॉट करने के लिए सभी कार्रवाई पूरी करने को केवल 45 मिनट दिए गए थे। भास्कर ने दिल्ली में सत्ता के  गलियारों को खंगाला। नौकरशाहों और संचार विभाग के अधिकारियों से लेकर टेलीकॉम कंपनियों ने ही बताया कि 45 मिनट में क्या-कुछ, कैसे और क्यों हुआ ? कौन-कौन परदे के पीछे काम कर रहे थे और कौन परदे के आगे?

अशोक रोड। संचार भवन। पहली मंजिल। दस जनवरी 2008 । वक्त दोपहर पौने तीन बजे। संचार मंत्री एंदीमुथु राजा के निजी सहायक आरके चंदोलिया का दफ्तर। राजा के हुक्म से एक प्रेस रिलीज जारी होती है। 2 जी स्पेक्ट्रम 3.30 से 4.30 के बीच जारी होगा। तुरंत हड़कंप मच गया। सिर्फ 45 मिनट तो बाकी थे..


वह एक आम दिन था। कुछ खास था तो सिर्फ ए. राजा की इस भवन के दफ्तर में मौजूदगी। राजा यहां के अंधेरे और बेरौनक गलियारों से गुजरने की बजाए इलेक्ट्रॉनिक्स भवन के चमचमाते दफ्तर में बैठना ज्यादा पसंद करते थे। पर आज यहां विराजे थे।  2 जी स्पेक्ट्रम के लिए चार महीने से चक्कर लगा कंपनियों के लोग भी इन्हीं अंधेरे गलियारों में मंडराते देखे गए।

लंच तक माहौल दूसरे सरकारी दफ्तरों की तरह सुस्त सा रहा। पौने तीन बजते ही तूफान सा आ गया। गलियारों में भागमभाग मच गई। मोबाइल फोनों पर होने वाली बातचीत चीख-पुकार में तब्दील हो गई। वे चंदोलिया के दफ्तर से मिली अपडेट अपने आकाओं को दे रहे थे। साढ़े तीन बजे तक सारी खानापूर्ति पूरी की जानी थी। उसके एक घंटे में अरबों-खरबों रुपए के मुनाफे की लॉटरी लगने वाली थी। जनवरी की सर्दी में कंपनी वालों के माथे से पसीना चू रहा था। मोबाइल पर बात करते हुए आवाज कांप रही थी। सबकी कोशिश सबसे पहले आने की ही थी। लाइसेंस के लिए कतार का कायदा फीस जमा करने के आधार पर तय होना था। फीस भी कितनी- सिर्फ 1658 करोड़ रुपए का बैंक ड्राफ्ट। साथ में बैंक गारंटी, वायरलेस सर्विस ऑपरेटर के लिए आवेदन, गृह मंत्रालय का सिक्यूरिटी क्लीरेंस, वाणिज्य मंत्रालय के फॉरेन इंवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (एफआईपीबी) का अनुमति पत्र.। ऐसे करीब एक दर्जन दस्तावेज जमा करना भी जरूरी था। वक्त सिर्फ 45 मिनट..

परदे के आगे की कहानी

25 सितंबर 2007 तक स्पेक्ट्रम के लिए आवेदन करने वाली कंपनियों में से जिन्हें हर प्रकार से योग्य माना गया उन कंपनियों के अफसरों को आठवीं मंजिल तक जाना था। डिप्टी डायरेक्टर जनरल (एक्सेस सर्विसेज) आर के श्रीवास्तव के दफ्तर में। यहीं मिलने थे लेटर ऑफ इंटेट। फिर दूसरी मंजिल के कमेटी रूम में बैठे टेलीकॉम एकाउंट सर्विस के अफसरों के सामने हाजिरी।

यहां दाखिल होने थे 1658 करोड़ रुपए के ड्राफ्ट के साथ सभी जरूरी कागजात। यहां अफसर स्टॉप वॉच लेकर बैठे थे ताकि कागजात जमा होने का समय सेकंडों में दर्ज किया जाए।

किसी के लिए भी एक-एक सेकंड इतना कीमती इससे पहले कभी नहीं था। सबकी घड़ियों में कांटे आगे सरक रहे थे। बेचैनी, बदहवासी और अफरातफरी बढ़ गई थी। चतुर और पहले से तैयार कंपनियों के तजुर्बेकार अफसरों ने इस सख्त इम्तहान में अव्वल आने के लिए तरकश से तीर निकाले। अपनी कागजी खानापूर्ति वक्त पर पूरी करने के साथ प्रतिस्पर्धी कंपनियों के लोगों को अटकाना-उलझाना जरूरी था। अचानक संचार भवन में कुछ लोग नमूदार हुए। ये कुछ कंपनियों के ताकतवर सहायक थे। दिखने में दबंग। हट्टे-कट्टे। कुछ भी कर गुजरने को तैयार। इनके आते ही माहौल गरमा गया। इन्हें अपना काम मालूम था। अपने बॉस का रास्ता साफ रखना, दूसरों को रोकना। लिफ्ट में पहले कौन दाखिल हो, इस पर झगड़े शुरू हो गए। धक्का-मुक्की होने लगी। सबको वक्त पर सही टेबल पर पहुंचने की जल्दी थी। पूर्व टेलीकॉम मंत्री सुखराम की विशेष कृपा के पात्र रहे हिमाचल फ्यूचरस्टिक कंपनी (एचएफसीएल) के मालिक महेंद्र नाहटा की तो पिटाई तक हो गई। उन्हें कतार से निकाल कर संचार भवन के बाहर धकिया दिया गया। दबंगों के इस डायरेक्ट-एक्शन की चपेट में कई अफसर तक आ गए। किसी के साथ हाथापाई हुई, किसी के कपड़े फटते-फटते बचे। आला अफसरों ने हथियार डाल दिए। फौरन पुलिस बुलाई गई। घड़ी की सुइयां तेजी से सरक रही थीं। हालात काबू में आते-आते वक्त पूरा हो गया।

 जो कंपनियां साम, दाम, दंड, भेद के इस खेल में चंद मिनट या सेकंडों से पीछे रह गईं, उनके नुमांइदे अदालत जाने की घुड़कियां देते निकले। लुटे-पिटे अंदाज में। एक कंपनी के प्रतिनिधि ने आत्महत्या कर लेने की धमकी दी। कई अन्य कंपनियों के लोग वहीं धरने पर बैठ गए। पुलिस को बल प्रयोग कर उन्हें हटाना पड़ा। आवेदन करने वाली 46 में से केवल नौ कंपनियां ही पौन घंटे के इस गलाकाट इम्तहान में कामयाब रहीं। इनमें यूनिटेक, स्वॉन, डाटाकॉम, एसटेल और श्ििपंग स्टॉप डॉट काम नई कंपनियां थीं जबकि आइडिया, टाटा, श्याम टेलीलिंक और स्पाइस बाजार में पहले से डटी थीं। एचएफसीएल, पाश्र्वनाथ बिल्डर्स और चीता कारपोरेट सर्विसेज के आवेदन खारिज हो गए। बाईसेल के बाकी कागज पूरे थे सिर्फ गृहमंत्रालय से सुरक्षा जांच का प्रमाणपत्र नदारद था। सेलीन इंफ्रास्ट्रक्चर के आवेदन के साथ एफआईपीबी का क्लियरेंस नहीं था। बाईसेल के अफसर छाती पीटते रहे कि प्रतिद्वंद्वियों ने उनके खिलाफ झूठे केस बनाकर गृह मंत्रालय का प्रमाणपत्र रुकवा दिया। उस दिन संचार भवन में केवल लूटमार का नजारा था। पौन घंटे का यह एपीसोड कई दिनों तक चर्चा का विषय बना रहा।

परदे के पीछे की कहानी

इसी दिन। सुबह नौ बजे। संचार मंत्री ए. राजा का सरकारी निवास। कुछ लोग नाश्ते के लिए बुलाए गए थे। इनमें टेलीकॉम सेक्रेट्री सिद्धार्थ बेहुरा, डीडीजी (एक्सेस सर्विसेज) आर के श्रीवास्तव, मंत्री के निजी सहायक आर. के. चंदोलिया, वायरलेस सेल के चीफ अशोक चंद्रा और वायरलेस प्लानिंग एडवाइजर पी. के. गर्ग थे। कोहरे से भरी उस सर्द सुबह गरमागरम चाय और नाश्ते का लुत्फ लेते हुए राजा ने अपने इन अफसरों को अलर्ट किया। राजा आज के दिन की अहमियत बता रहे थे। खासतौर से दोपहर  2.45 से 4.30 बजे के बीच की। राजा ने बारीकी से समझाया कि कब क्या करना है और किसके हिस्से में क्या काम है? चाय की आखिरी चुस्की के साथ राजा ने बेफिक्र होकर कहा कि मुझे आप लोगों पर पूरा भरोसा है। अफसर खुश होकर बंगले से बाहर निकले और रवाना हो गए।

 दोपहर तीन बजे। संचार भवन। आठवीं मंजिल। एक्सेस सर्विसेज का दफ्तर। फोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ डीडीजी (एक्सेस सर्विसेज) आर. के. श्रीवास्तव थे। यहां मौजूद अफसरों को चंदोलिया के कमरे में तलब किया गया। मंत्री के ऑफिस के ठीक सामने चंदोलिया का कक्ष है। एक्शन प्लान के मुताबिक सब यहां इकट्ठे हुए। इनका सामना स्वॉन टेलीकॉम और यूनिटेक के आला अफसरों से हुआ। चंदोलिया ने आदेश दिया कि इन साहेबान से ड्राफ्ट और बाकी कागजात लेकर शीर्ष वरीयता प्रदान करो। बिना देर किए स्वॉन को पहला नंबर मिला, यूनिटेक को दूसरा। सबकुछ इत्मीनान से। यहां कोई धक्कामुक्की और अफरातफरी नहीं मची। बाहर दूसरी कंपनियों को साढ़े तीन बजे तक जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने में पसीना आ रहा था। अंदर स्वॉन और यूनिटेक को पंद्रह मिनट भी नहीं लगे। इन कंपनियों को पहले ही मालूम था कि करना क्या है। इसलिए इनके अफसर चंदोलिया के दफ्तर से प्रसन्नचित्त होकर विजयी भाव से मोबाइल कान से लगाए बाहर निकले। दूर कहीं किसी को गुड न्यूज देते हुए।

  45 मिनट के तेज रफ्तार घटनाक्रम ने एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए के घोटाले की कहानी लिख दी थी। राजा के लिए बेहद अहम यह दिन सरकारी खजाने पर बहुत भारी पड़ा था।


फोन कॉल्स में दर्ज फरेब

2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की मुख्य किरदार नीरा राडिया के नौ टेलीफोन 300 दिन तक आयकर विभाग ने टैप किए। कुल 5,851 कॉल्स रिकार्ड की गईं। इनमें से सौ का रिकॉर्ड लीक हो चुका है। अपने पाठकों के लिए भास्कर प्रस्तुत कर रहा है - टेप हुई गोपनीय बातचीत के मुख्य अंश। साथ में, इससे जुड़े संपादकों और किरदारों की सफाई भी। ताकि पता चले कि दुनिया को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले खुद क्या कर रहे हैं।


आप प्रधानमंत्री हैं, राजदंड क्यों नहीं उठाते?


विशेष संपादकीय . प्रधानमंत्री को ‘मैं आजाद हूं’ फिल्म देखनी चाहिए। पूरी नहीं। आखिर के एक-दो दृश्य। उसमें संकट से घिरे मुख्यमंत्री से भ्रष्ट कारोबारी अवैध लाइसेंस व दीगर फायदे मांग रहे हैं। मुख्यमंत्री बेबसी जाहिर कर रहे हैं। इस पर उन्हें धमकाया जाता है: ‘क्यों नहीं दे सकते टेंडर, आखिर आप मुख्यमंत्री हैं।

जो चाहे कर सकते हैं।’ बस, इस बात से माहौल ही बदल जाता है। मुख्यमंत्री में नई जान आ जाती है : ‘ अच्छा याद दिलाया कि मैं मुख्यमंत्री हूं, जो चाहे कर सकता हूं। अफसरों, जेल में डाल दो इन सब भ्रष्टों को!’ जाहिर है, राजदंड के चलते ही सारे उद्दंड समाप्त।

देश में अब तक के सबसे बड़े घोटाले 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन पर हमारे ईमानदार प्रधानमंत्री आखिर मौन क्यों? यह प्रश्न सुप्रीम कोर्ट ने इतनी ही सीधी भाषा में उठाया था। लेकिन ‘आप प्रधानमंत्री हैं, जो चाहे कर सकते हैं’ जैसी ललकार उन्हें एक ऐसे शख्स से मिली, जो सारे 2जी घोटाले में खुद कुछ इस तरह फंसा कि उनके जैगुआर जैसी विशाल प्रतिष्ठा के नैनो जैसी छोटी होने का खतरा सामने दीख रहा है। रतन टाटा की बात हो रही है यहां।

उनकी कंपनी को 1658 करोड़ रुपए में लाइसेंस मिला। तत्काल इसका 27 प्रतिशत हिस्सा जापानी कंपनी डोकोमो को 12,924 करोड़ रु. में बेच दिया। यानी महाघोटाले से भारी मुनाफा। फिर भी गरजे सरकार पर। कहा: देश ‘बनाना रिपब्लिक’ बन जाएगा, यदि भ्रष्टाचार नहीं रोका।

बनाना रिपब्लिक यानी ऐसी गरीब अर्थव्यवस्था वाला देश, जिसकी इकोनॉमी सिर्फ एक फसल (जैसे केले) पर टिकी हो और देश भ्रष्ट नेतृत्व के कब्जे में हो! जो लोग इस शर्मनाक घोटाले के टेप से वाकिफ हैं, उन्हें इस बयान ने बुरी तरह चौंकाया।

कठघरे में खड़े लोग भी अब प्रधानमंत्री को चेतावनी दे रहे हैं। लेकिन ‘मन’ है कि मौन ही है। मीडिया-राडिया गठजोड़ का क्या? - भारतीय मीडिया के लिए यह शर्मनाक से ज्यादा दर्दनाक है। गौर सिर्फ यह करना होगा कि जिन जर्नलिस्ट के नाम लॉबीस्ट होने का दाग लगा है- वे सहज सामान्य पत्रकार नहीं है।

वे सभी सेलिब्रिटी हैं। चमत्कारिक व्यक्तित्व वाले। इसलिए चमत्कारिक काम भी सामने आ रहे हैं। लेकिन पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं के लिए मीडिया के इस वर्ग का ऐसा बेनकाब होना खुशखबरी है। क्योंकि बड़ा साहस दिखाते हुए, बड़ी जिम्मेदारी से अलग-अलग मीडिया इस पर खुलकर बोल रहा है, सबकी आंखें खोल रहा है। हमेशा दूसरों को आइना दिखाया, अब अपनी शक्ल सुधारने में जुट गया है। अच्छा यह है कि अब जनता उसे और कड़ाई से जांचेगी।

.. लेकिन इसी को फरेब कहते हैं - इस अपवित्र गठजोड़ ने ही 2जी महाघोटाले को राष्ट्रीय धोखाधड़ी बना दिया है। जब इतने बड़े पैमाने पर, इतने बड़े संपादक ‘ऐसा’ साक्षात कर रहे हों तो यह भ्रष्टाचार को भी मात कर फरेब की श्रेणी में आ जाता है।

यह ‘पेड न्यूज’ से भी ज्यादा भयावह है। खबरों में दुनिया तलाशने वाले पाठकों/दर्शकों के लिए दैत्याकार धक्का है। लेकिन मीडिया ही सत्ता की दलाली की सबसे बड़ी कहानी की परतें खोलेगा। यही हमारी अगली, असली चुनौती होगी। मूर्तिभंजन का दौर होगा यह।

बोफोर्स व हवाला से तुलना कितनी सही? - इस लूट के किरदारों के कुछ समर्थक यह प्रचारित करने में लग गए हैं कि बोफोर्स और हवाला कांड के समय जो भय और भ्रम फैलाया गया था, उससे देश को भारी नुकसान पहुंचा। कुछ सिद्ध तो नहीं ही हुआ, सरकार चली गई, मंत्री बर्खास्त हो गए। धब्बा लग गया। हर किसी को ‘चोर’ बना दिया गया। फिर वैसा ही वातावरण बनाया जा रहा है। यह प्रचार ठीक नहीं है।

डॉ. मनमोहन सिंह की हालत तो हर्षद मेहता कांड के समय के वित्त मंत्री जैसी है। जो तब भी उतना ही नैराश्य में डूबा हुआ था, जितना आज। सिर्फ पद का अंतर है। घोटाला भी बोफोर्स या हवाला जैसा नहीं है। इसमें भ्रष्टाचार चाहे जैसा हो, चरित्रहीनता ठीक वैसी है जैसी संसद में प्रश्न पूछने के बदले कापरेरेट घरानों से पैसे वसूलने में दिखी थी। या कि जैसा राव सरकार को बचाने के लिए सांसदों को घूस देने में।

क्या हम सवा सौ करोड़ लोगों ने किया घोटाला? - देश में स्वास्थ्य पर खर्च होने वाली रकम से कोई नौ गुना बड़ी राशि लूट ली गई है इस पूरी साजिश में। लेकिन पीएम की चुप्पी के कारण कठघरे में खड़ा हर व्यक्ति राजा बन बैठा और हमें रंक बनाता रहा। अब सभी कह रहे हैं ‘हम तो अपना काम कर रहे थे।’ जैसिका हत्याकांड में सबके बरी होने पर एक शीर्षक मशहूर हुआ था ‘नोबडी किल्ड जैसिका!’ ऐसा ही इसमें है। किसी ने घोटाला नहीं किया। तो क्या पौने दो लाख करोड़ रुपए, हम सवा सौ करोड़ लोग खा गए?

जवाब सिर्फ प्रधानमंत्री दे सकते हैं। जो स्वयं 2 नवंबर 2007 को इस घपले को भांप गए थे और आपत्ति लेते हुए पत्र लिखा था राजा को। ठीक दो माह बाद अचानक न जाने क्या दबाव आया कि उन्होंने राजा को इसकी मंजूरी दे डाली। क्यों? कुछ लोग संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) पर कह रहे हैं कि इससे क्या हो जाएगा?

बोफोर्स जेपीसी के सदस्य की टिप्पणी से समझिए : ,‘मैं तमिल हूं और मेरे ईष्ट भगवान शिव हैं। यदि आज साक्षात शिव भी आकर कहें कि बोफोर्स घोटाले में शीर्ष पर बैठे लोग शामिल नहीं थे तो मैं उनकी भी नहीं सुनूंगा।’ यानी रिपोर्ट भले ही रद्दी में फेंक दी जाए, लेकिन उसमें ऐसे शब्द आ सकते हैं जो सच्चई के रूप में हमेशा गूंजते रहेंगे।

मेरा मुंह खुला तो कई नेता पहुंच जाएंगे जेल


लखनऊ। सपा में आजम खान की वापसी के बाद अमर सिंह ने मुलायम सिंह पर निशाना साधते हुए बोला कि वह अपना मुंह खोल देंगे तो सपा के कई नेता जेल पहुंच जाएंगे।

गौरतलब हैं कि अमर सिंह जब सपा में थे तब उनसे झगड़े के चलते आजम खान को पार्टी से निकाल दिया गया था। आज समय बदल गया है। अमर सिंह को सपा से बेदखल कर दिया गया है और आजम खान की वापसी हो गई है।

मुलायम सिंह ने मुस्लिम वोटों की मजबूरी के चलते आजम खान को साथ कर लिया है। इससे अमर सिंह भड़के हुए है।

मालूम हो कि पूर्वी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर लोकमंच के अध्यक्ष और सांसद अमर सिंह पद यात्रा पर हैं। पूर्वांचल स्वाभिमान यात्रा नौ दिसम्बर को वाराणसी और तीस दिसम्बर को गोरखपुर में समाप्त होगी।

सिंह ने कहा था कि  मुलायम शुरू से ही पूर्वी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने के विरोधी रहे हैं। वह नहीं चाहते हैं कि इस इलाके का विकास हो और यहां के लोग विकसित और आत्म निर्भर हों।

दूसरी ओर अमर सिंह के बयानों पर प्रतिक्रिया देते हुए समाजवादी पार्टी में दोबारा शामिल हुए वरिष्ठ नेता आजम खां ने कहा कि अमर वो सड़ी गली बैसाखी हैं जिसे मुलायम फेंक चुके हैं। अमर सिंह को अपना इलाज कराना चाहिए। इस तरह के बयान देकर वो साबित कर रहे हैं कि अब उनकी मानसिक हालत ठीक नहीं है।


सीबीआई वेबसाइट हैक करने वालों पर मामला दर्ज



एजेंसी. नई दिल्ली सीबीआई ने अपनी वेबसाइट हैक करने और बिगाड़ने के लिए अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ शनिवार को मामला दर्ज कराया है। ये व्यक्ति खुद को ‘पाकिस्तानी साइबर आर्मी’ से संबधित बता रहे हैं।

जांच एजेंसी के आधिकारिक प्रवक्ता ने बताया कि सीबीआई ने सूचना प्रौद्योगिकी कानून की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज कराया है। वेबसाइट को यथाशीघ्र सार्वजनिक तौर पर बहाल करने की कोशिशें जारी हैं।

प्रवक्ता ने संक्षिप्त बयान में कहा, ‘सीबीआई की आधिकारिक वेबसाइट पर 3-4 दिसंबर की दरम्यानी रात धावा किया गया। इस सिलसिले में जांच एजेंसी की साइबर सेल में मामला दर्ज किया गया है।’
सीबीआई की वेबसाइट का होम पेज हैक होने के बाद पाकिस्तानी साइबर आर्मी का संदेश इस पर दिखने लगा। इसमें ‘इंडियन साइबर आर्मी’ को चेतावनी दी गई है कि उनकी वेबसाइट पर हमले नहीं किए जाने चाहिए

धोनी का जवाब नहीं, दुनिया के सबसे रोमांचक क्रिकेटर हैं: मुशर्रफ


नई दिल्ली. पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की तारीफों के पुल बांधे हैं। मुशर्रफ ने धोनी के बारे में कहा है कि इस समय दुनिया के सबसे रोमांचक और मन खुश कर देने वाले क्रिकेटर हैं। एक निजी टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में मुशर्रफ ने कहा कि हालांकि, सचिन के प्रदर्शन में सबसे ज़्यादा निरंतरता है, लेकिन सबसे रोमांचक और मनोरंजक क्रिकेट धोनी ही खेल रहे हैं। पाकिस्तान के इस पूर्व तानाशाह ने कहा, मैंने पहले उनके बालों की तारीफ की थी, लेकिन अब उन्होंने बाल छोटे करवा लिए हैं मगर फिर भी उन्हें और उनके खेल को देखना सबसे मजेदार है।

ब्रिटेन में निर्वासित जीवन जी रहे मुशर्रफ ने भारतीय क्रिकेट टीम की भी खुलकर तारीफ करते हुए कहा, 'इस टीम के प्रदर्शन में पिछले कुछ सालों से निरंतरता है। मैं भारतीय क्रिकेट की प्रगति पर बहुत खुश हूं। मैं यह जरूर कहूंगा कि भारत के पास बेहतरीन क्रिकेटर हैं।' हालांकि, पाकिस्तान क्रिकेट के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, 'मुझे पाक क्रिकेट की हालत पर रोना आ रहा है। टीम का मनोबल गिरा हुआ है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पाक टीम से जुड़ा कोई न कोई विवाद हर रोज सामने आ रहा है।'

गौरतलब है कि भारतीय टीम के २००६ के पाकिस्तान दौरे पर वहां तत्कालीन शासक परवेज मुशर्रफ ने धोनी के लंबे बालों की जमकर तारीफ करते हुए कहा था कि आपके बाल बहुत सुंदर हैं, इन्हें छोटा मत करवाइएगा।

गौरतलब है कि भारत सरकार ने पाकिस्‍तान के पूर्व सैन्‍य तानाशाह परवेज मुशर्रफ को वीजा देने से इनकार कर दिया था। मुशर्रफ को एक सेमिनार में हिस्‍सा लेने के लिए भारत आमंत्रित किया गया था। मुर्शरफ को यह न्‍यौता यंग प्रेसिडेंट्स एसोसिएशन ने भेजा था। सूत्रों के मुताबिक भारत सरकार को मुशर्रफ की भारत यात्रा के उनके असली ‘मकसद’ को लेकर शंका हो गई थी। सरकार का मानना है कि यह पाकिस्‍तान की राजनीति में वापसी का सैन्‍य तानाशाह का हथकंडा है। मुशर्रफ ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा था कि वे फिर भारत कभी नहीं आएंगे। 

एक छत..जिससे ढंक जाएगा पूरा शहर

भोपाल. वैज्ञानिक ह्यूस्टन को विशालकाय गुंबद से ढंकने में लगे हैं। गुंबद का क्षेत्रफल दो करोड़ 10 लाख वर्गफीट होगा। इसे दुनिया की सबसे लंबी छत कहा जा सकता है। इस छत का एक पैनल 15 फीट तक चौड़ा होगा। पूरे शहर को ढंकने में एक लाख 47 हजार पैनलों का इस्तेमाल होगा। इनको बनाने के लिए पॉलीथीन की तरह एक बहुत ही हल्के पदार्थ टेक्सलॉन ईटीएफई का प्रयोग होगा।

कभी सिर ढंकने के लिए छत बनाने वाला इंसान अब पूरा शहर ढंकने की तैयारी कर रहा है। अमेरिका का ह्यूस्टन शहर मौसम की मार झेलने के लिए अभिशप्त है। 2008 में आए हरिकेन के कारण शहर को करीब चार हफ्ते के लिए बंद करना पड़ा था और करीब 10 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था।

हरिकेन ही नहीं, तेज गर्मी और आद्र्रता भी इस शहर की बड़ी समस्या है। अमेरिका के वैज्ञानिक शहर के ऊपर एक ऐसी छत तैयार करने में लगे हैं जो उसे अत्यधिक ताप (ग्लोबल वार्मिग), बिजली और भयंकर चक्रवाती तूफानों (हरिकेन) से बचाएगी।

टेक्सलॉन ईटीएफई

टेक्सलॉन ईटीएफई को भविष्य का कांच कहा जा रहा है, जिसे जर्मनी की वेक्टर फॉइल कंपनी ने बनाया है। टेक्सलॉन के बिना ह्यूस्टन के इस गुंबद को बनाने की कल्पना ही नहीं की जा सकती। टेक्सलॉन का बना यह गुंबद अत्यधिक तेज माने जाने वाले हरिकेन (कैटेगरी-5) और 200 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाओं से ह्यूस्टन को बचाएगा।



क्या है हरिकेन

हरिकेन उष्णकटिबंधीय चक्रवात होते हैं जो तीव्र हवाएं और घनघोर वर्षा लाते हैं। उत्तरी गोलार्ध में इसकी दिशा दक्षिणावर्त और दक्षिणी गोलार्ध में वामावर्त होती है।


मजबूती और तकनीक का बेमिसान नमूना है ह्यूस्टन की छत

बड़े-बड़े पैनल बेहद मजबूत बनाए गए है। जो किसी भी हालात का सामना करने में सक्षम हैं।

बारिश के दौरान पानी की निकासी व्यवस्था के लिए पैनल को सुविधा अनुसार खोला जा सकता है।

भारतीय मूल के शुवो राय ने कृत्रिम किडनी बनाई


वॉशिंगटन. भारतीय मूल के वैज्ञानिक और उनकी टीम ने ‘कृत्रिम किडनी’ बनाने का दावा किया है। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक शुवो राय और उनके साथियों ने इस किडनी को तैयार किया है। उनका कहना है कि यह कृत्रिम किडनी न सिर्फ खून से जहरीले पदार्थ को फिल्टर करती है बल्कि वास्तविक किडनी की कोशिकाओं का इस्तेमाल करके दूसरे महत्वपूर्ण कार्य भी करती है। जैसे कि ब्लड प्रेशर पर नियंत्रण रखना और विटामिन डी बनाना। राय और उनकी टीम चूहों व अन्य प्राणियों पर इस नए डिवाइस का परीक्षण कर चुकी है। अब वह मनुष्य पर इसका परीक्षण करना चाहती है।

खून को बखूबी फिल्टर करती है यह

यह कृत्रिम किडनी दो भागों में बंटी है। एक हिस्से में जहरीले पदार्थ को फिल्टर किया जाता है। इस हिस्से में सिलिकॉन के हजारों मेम्बरेंस एक दूसरे के साथ लगी होती हैं। इनके छोटे-छोटे छेद शरीर के ब्लड प्रेशर की मदद से ही खून को बखूबी फिल्टर करते हैं और जहरीले पदार्थ, शुगर, पानी, नमक अलग निकल जाते हैं। यहां से साफ खून के अलावा फिल्टर के बाद बचा तरल भी डिवाइस के दूसरे हिस्से में पहुंचता है। इस हिस्से में कुछ और सिलिकॉन मेम्बरेन लगी होती हैं जिन पर मानवीय किडनी की कोशिका की कोटिंग होती है।

साफ खून और तरल जब इससे गुजरते हैं तो यह डिवाइस पानी, शुगर और नमक को रीऑब्जर्व कर लेती है। साथ ही विटामिन डी भी बनता है और ब्लड प्रेशर को कम होने से भी रोकती है। जो वेस्ट पदार्थ रीऑब्जर्व नहीं होता वह एक ट्यूब में चला जाता है। यह ट्यूब ब्लैडर से जुड़ी होती है। इस तरह यह वेस्ट पदार्थ पेशाब में चला जाता है। जैसा कि एक सामान्य किडनी करती है।

डायलिसिस से बेहतर 

शुओ राय ने बताया कि डायलिसिस की प्रक्रिया में समय ज्यादा लगाता है और इसमें मरीज कमजोर भी हो जाता है। अधिकतर मरीज इसे पसंद नहीं करते। लेकिन नई कृत्रिम किडनी न सिर्फ जहरीले पदार्थ को फिल्टर करती है। बल्कि इसमें मेटाबॉलिक फंक्शंस और हार्मोनल फंक्शंस भी हैं। डायलिसिस में यह क्षमताएं नहीं होती हैं